Categories: Hindi Stories Content

Penalty / जुरमाना

Penalty / जुरमाना


यह कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गई है!

ऐसा शायद ही कोई महीना जाता कि अलारक्खी के वेतन से कुछ जुरमाना न कट जाता। कभी-कभी तो उसे ६) के ५) ही मिलते, लेकिन वह सब कुछ सहकर भी सफाई के दारोग़ा मु० खैरात अली खाँ के चंगुल में कभी न आती। खाँ साहब की मातहती में सैकड़ों मेहतरानियाँ थीं। किसी की भी तलब न कटती, किसी पर जुर्माना न होता, न डाँट ही पड़ती। खाँ साहब नेकनाम थे, दयालु थे। मगर अलारक्खी उनके हाथों बराबर ताडऩा पाती रहती थी। वह कामचोर नहीं थी, बेअदब नहीं थी, फूहड़ नहीं थी, बदसूरत भी नहीं थी; पहर रात को इस ठण्ड के दिनों में वह झाड़ू लेकर निकल जाती और नौ बजे तक एक-चित्त होकर सडक़ पर झाड़ू लगाती रहती। फिर भी उस पर जुर्माना हो जाता। उसका पति हुसेनी भी अवसर पाकर उसका काम कर देता, लेकिन अलारक्खी की क़िस्मत में जुर्माना देना था। तलब का दिन औरों के लिए हँसने का दिन था अलारक्खी के लिए रोने का। उस दिन उसका मन जैसे सूली पर टँगा रहता। न जाने कितने पैसे कट जाएँगे? वह परीक्षा वाले छात्रों की तरह बार-बार जुर्माना की रकम का तखमीना करती।

उस दिन वह थककर जरा दम लेने के लिए बैठ गयी थी। उसी वक्त दारोगाजी अपने इक्के पर आ रहे थे। वह कितना कहती रही हजूरअली, मैं फिर काम करूँगी, लेकिन उन्होंने एक न सुनी थी, अपनी किताब में उसका नाम नोट कर लिया था। उसके कई दिन बाद फिर ऐसा ही हुआ। वह हलवाई से एक पैसे के सेवड़े लेकर खा रही थी। उसी वक्त दारोग़ा न जाने किधर से निकल पड़ा था और फिर उसका नाम लिख लिया गया था। न जाने कहाँ छिपा रहता है? जरा भी सुस्ताने लगे कि भूत की तरह आकर खड़ा हो जाता है। नाम तो उसने दो ही दिन लिखा था, पर जुर्माना कितना करता है-अल्ला जाने! आठ आने से बढक़र एक रुपया न हो जाए। वह सिर झुकाये वेतन लेने जाती और तखमीने से कुछ ज्यादा ही कटा हुआ पाती। काँपते हुए हाथों से रुपये लेकर आँखों में आँसू भरे लौट आती। किससे फरियाद करे, दारोग़ा के सामने उसकी सुनेगा कौन?

आज फिर वही तलब का दिन था। इस महीने में उसकी दूध पीती बच्ची को खाँसी और ज्वर आने लगा था। ठण्ड भी खूब पड़ी थी। कुछ तो ठण्ड के मारे और कुछ लडक़ी के रोने-चिल्लाने के कारण उसे रात-रात-भर जागना पड़ता था। कई दिन काम पर जाने में देर हो गयी। दारोग़ा ने उसका नाम लिख लिया था। अबकी आधे रुपये कट जाएँगे। आधे भी मिल जाएँ तो गनीमत है। कौन जाने कितना कटा है? उसने तडक़े बच्ची को गोद में उठाया और झाड़ू लेकर सडक़ पर जा पहुँची। मगर वह दुष्ट गोद से उतरती ही न थी। उसने बार-बार दारोग़ा के आने की धमकी दी-अभी आता होगा, मुझे भी मारेगा, तेरे भी नाक-कान काट लेगा। लेकिन लडक़ी को अपने नाक-कान कटवाना मंजूर था, गोद से उतरना मंजूर न था; आखिर जब वह डराने-धमकाने, प्यारने-पुचकारने, किसी उपाय से न उतरी तो अलारक्खी ने उसे गोद से उतार दिया और उसे रोती-चिल्लाती छोडक़र झाड़ू लगाने लगी। मगर वह अभागिनी एक जगह बैठकर मन-भर रोती भी न थी। अलारक्खी के पीछे लगी हुई बार-बार उसकी साड़ी पकडक़र खींचती, उसकी टाँग से लिपट जाती, फिर जमीन पर लोट जाती और एक क्षण में उठकर फिर रोने लगती।

उसने झाड़ू तानकर कहा-चुप हो जा, नहीं तो झाड़ू से मारूँगी, जान निकल जाएगी; अभी दारोग़ा दाढ़ीजार आता होगा…

पूरी धमकी मुँह से निकल भी न पाई थी कि दारोग़ा खैरातअली खाँ सामने आकर साइकिल से उतर पड़ा। अलारक्खी का रंग उड़ गया, कलेजा धक्-धक् करने लगा! या मेरे अल्लाह, कहीं इसने सुन न लिया हो! मेरी आँखें फूट जाएँ। सामने से आया और मैंने देखा नहीं। कौन जानता था, आज पैरगाड़ी पर आ रहा है? रोज तो इक्के पर आता था। नाडिय़ों में रक्त का दौडऩा बन्द हो गया। झाड़ू हाथ में लिए नि:स्तब्ध खड़ी रह गयी।

दारोग़ा ने डाँटकर कहा-काम करने चलती है तो एक पुच्छिल्ला साथ ले लेती है। इसे घर पर क्यों नहीं छोड़ आयी?

अलारक्खी ने कातर स्वर में कहा-इसका जी अच्छा नहीं है हुजूर, घर पर किसके पास छोड़ आती।

‘क्या हुआ है इसको!’

‘बुखार आता है हुजूर!’

‘और तू इसे यों छोडक़र रुला रही है। मरेगी कि जियेगी?’

‘गोद में लिये-लिये काम कैसे करूँ हुजूर!

‘छुट्टी क्यों नहीं ले लेती!’

‘तलब कट जाती हुजूर, गुजारा कैसे होता?’

‘इसे उठा ले और घर जा। हुसेनी लौटकर आये तो इधर झाड़ू लगाने के लिए भेज देना।’

अलारक्खी ने लडक़ी को उठा लिया और चलने को हुई, तब दारोग़ाजी ने पूछा-मुझे गाली क्यों दे रही थी?

अलारक्खी की रही-सही जान भी निकल गयी। काटो तो लहू नहीं। थर-थर काँपती बोली-नहीं हुजूर, मेरी आँखें फूट जाएँ जो तुमको गाली दी हो।

और वह फूट-फूटकर रोने लगी।

सन्ध्या समय हुसेनी और अलारक्खी दोनों तलब लेने चले। अलारक्खी बहुत उदास थी।

हुसेनी ने सान्त्वना दी-तू इतनी उदास क्यों है? तलब ही न कटेगी-काटने दे अबकी से तेरी जान की कसम खाता हूँ, एक घूँट दारू या ताड़ी नहीं पिऊँगा।

‘मैं डरती हूँ, बरखास्त न कर दे मेरी जीभ जल जाय! कहाँ से कहाँ …

‘बरखास्त कर देगा, कर दे, उसका अल्ला भला करे! कहाँ तक रोयें!’

‘तुम मुझे नाहक लिये चलते हो। सब-की-सब हँसेंगी।’

‘बरखास्त करेगा तो पूछूँगा नहीं किस इलजाम पर बरखास्त करते हो, गाली देते किसने सुना? कोई अन्धेर है, जिसे चाहे, बरखास्त कर दे और कहीं सुनवाई न हुई तो पंचों से फरियाद करूँगा। चौधरी के दरवाजे पर सर पटक दूँगा।’

‘ऐसी ही एकता होती तो दारोग़ा इतना जरीमाना करने पाता?’

‘जितना बड़ा रोग होता है, उतनी दवा होती है, पगली!’

फिर भी अलारक्खी का मन शान्त न हुआ। मुख पर विषाद का धुआँ-सा छाया हुआ था। दारोग़ा क्यों गाली सुनकर भी बिगड़ा नहीं, उसी वक्त उसे क्यों नहीं बरखास्त कर दिया, यह उसकी समझ में न आता था। वह कुछ दयालु भी मालूम होता था। उसका रहस्य वह न समझ पाती थी, और जो चीज हमारी समझ में नहीं आती उसी से हम डरते हैं। केवल जुरमाना करना होता तो उसने किताब पर उसका नाम लिखा होता। उसको निकाल बाहर करने का निश्चय कर चुका है, तभी दयालु हो गया था। उसने सुना था कि जिन्हें फाँसी दी जाती है, उन्हें अन्त समय खूब पूरी मिठाई खिलायी जाती है, जिससे मिलना चाहें उससे मिलने दिया जाता है। निश्चय बरखास्त करेगा।

म्युनिसिपैलिटी का दफ्तर आ गया। हजारों मेहतरानियाँ जमा थीं, रंग-बिरंग के कपड़े पहने, बनाव-सिंगार किये। पान-सिगरेट वाले भी आ गये थे, खोंचे वाले भी। पठानों का एक दल भी अपने असामियों से रुपये वसूली करने आ पहुँचा था। वह दोनों भी जाकर खड़े हो गये।

वेतन बँटने लगा। पहले मेहतरानियों का नम्बर था। जिसका नाम पुकारा जाता वह लपककर जाती और अपने रुपये लेकर दारोग़ाजी को मुफ्त की दुआएँ देती हुई चली जाती। चम्पा के बाद अलारक्खी का नाम बराबर पुकारा जाता था। आज अलारक्खी का नाम उड़ गया था। चम्पा के बाद जहूरन का नाम पुकारा गया जो अलारक्खी के नीचे था।

अलारक्खी ने हताश आँखों से हुसेनी को देखा। मेहतरानियाँ उसे देख-देखकर कानाफूसी करने लगीं। उसके जी में आया, घर चली जाए। यह उपहास नहीं सहा जाता। जमीन फट जाती कि उसमें समा जाती।

एक के बाद दूसरा नाम आता गया और अलारक्खी सामने के वृक्षों की ओर देखती रही। उसे अब इसकी परवा न थी कि किसका नाम आता है, कौन जाता है, कौन उसकी ओर ताकता है, कौन उस पर हँसता है।

सहसा अपना नाम सुनकर वह चौंक पड़ी! धीरे से उठी और नवेली बहू की भाँति पग उठाती हुई चली। खजांची ने पूरे ६) उसके हाथ पर रख दिये।

उसे आश्चर्य हुआ। खजांची ने भूल तो नहीं की? इन तीन बरसों में पूरा वेतन तो कभी मिला नहीं। और अबकी तो आधा भी मिले तो बहुत है। वह एक सेकण्ड वहाँ खड़ी रही कि शायद खजांची उससे रुपया वापस माँगे। जब खजांची ने पूछा, अब क्यों खड़ी है। जाती क्यों नहीं? तब वह धीरे से बोली-यह तो पूरे रुपये हैं।

खजांची ने चकित होकर उसकी ओर देखा!

‘तो और क्या चाहती है, कम मिलें?’

‘कुछ जरीमाना नहीं है?’

‘नहीं, अबकी कुछ जरीमाना नहीं है।’

अलारक्खी चली, पर उसका मन प्रसन्न न था। वह पछता रही थी कि दारोग़ाजी को गाली क्यों दी।


Nageshwar Das

Nageshwar Das, BBA graduation with Finance and Marketing specialization, and CEO, Web Developer, & Admin in ilearnlot.com.

Recent Posts

Shopify Xero Integration: 2026 Success

Hiring the right virtual assistant can transform your customer support experience. Discover the top skills to look for when you…

15 hours ago

Xero Zoho CRM Integration: 2026 Success

Seamlessly sync Xero Zoho CRM Integration in 2026! Boost efficiency & streamline workflows. Discover the best integration solution now! Xero…

17 hours ago

WordPress Salesforce Integration: 2026 Success

Boost your CRM workflow! Discover the ultimate WordPress Salesforce integration for 2026—seamless sync, real-time data, and higher conversions. Click to…

18 hours ago

How TikTok Actually Counts Views 2026 Success

Learn how TikTok actually counts views in 2026! Discover the algorithm secrets & key factors influencing view tracking. Get the…

19 hours ago

QuickBooks Salesforce Integration: 2026 Success

Seamlessly QuickBooks Salesforce Integration in 2026. Sync data, save time, and boost productivity—start your free trial today! QuickBooks Salesforce Integration:…

3 days ago

Salesforce SurveyMonkey Integration 2026 Success

Discover the Salesforce SurveyMonkey Integration 2026—seamlessly connect customer feedback with CRM data to boost insights and drive action. Learn more!…

3 days ago